चित्तौड़गढ़ किला - राजस्थान

भूमिका 

राजस्थान को केवल राजाओं की भूमि नहीं माना जाता। यहाँ के किले और महल न सिर्फ स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण हैं, बल्कि वे ऐतिहासिक वीरगाथाओं के गवाह भी हैं। ऐसे ही एक प्रसिद्ध किले का नाम है – चित्तौड़गढ़ किला। 


यह किला सिर्फ ईंटों और पत्थरों की संरचना नहीं है, बल्कि राजपूत साहस, बलिदान और गर्व का एक प्रतीक है। यह ब्लॉग आपको चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास, वास्तुकला, महत्वपूर्ण स्थलों और यात्रा की सलाहों से अवगत कराएगा। 


1).चित्तौड़गढ़ किले का परिप्रेक्ष्य


चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh Fort) का निर्माण 7वीं सदी में मौर्य वंश ने किया था। इसके बाद यह मेवाड़ राज्य की राजधानी बन गया और राजपूतों का मुख्य शक्ति केंद्र बनकर रहा।

किले ने तीन मुख्य हमलों का सामना किया: 



1303 ई. – अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को हासिल करने के लिए किले पर हमला किया। 


1535 ई. – गुजरात के बहादुर शाह ने आक्रमण किया, जिससे दूसरी जौहर की घटना घटित हुई। 


1567 ई. – अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और व्यापक विनाश किया। 


हर हमले के समय राजपूत योद्धाओं ने लड़ाई लड़ी और राजपूत महिलाओं ने आत्म-सम्मान के लिए जौहर कर लिया। इन घटनाओं ने चित्तौड़गढ़ को अमर बना दिया।   

2).निर्माण एवं वास्तुकला की कला 



चित्तौड़गढ़ किला भारत का सबसे विशाल किला है, जो लगभग 700 एकड़ क्षेत्र में विस्तारित है। यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर बना है जिसकी ऊँचाई लगभग 180 मीटर है। 


किले की अद्वितीय विशेषताएँ: 


7 बड़े द्वार (पोल): राम पोल, पदन पोल, भैरव पोल आदि। 

 राजमहल, पूजा स्थल, जल स्रोत और स्मारक किले के अंतर्गत पाए जाते हैं। 


निर्माण में राजस्थान की वास्तुशिल्प शैली और मुगल प्रभाव दोनों नजर आते हैं। 


सुरक्षा के लिए निर्मित कर्कश सड़कें, मजबूत दीवारें, और जल संग्रहण की प्रणाली अद्भुत है।

 

 3).चित्तौड़गढ़ किले के मुख्य आकर्षण स्थल 


a) विजय का स्तंभ 

राणा कुंभा द्वारा 1448 ई. यह स्तंभ मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर जीत के उपलक्ष्य में बनाया गया। इसकी ऊँचाई 122 फीट है और इसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तथा शिलालेख खुदे हुए हैं। 



b) कीर्ति स्तंभ 


यह जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित किया गया है। इसकी ऊँचाई लगभग 22 मीटर है और यह जैन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। 


c) रानी पद्मिनी का महल 

यह जल महल के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी की छवि इसी महल के पानी में देखी थी और उसे हासिल करने की इच्छा में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। 


द) राणा कुंभा का महल 


चित्तौड़गढ़ का सबसे पुराना किला जहाँ रानी मीराबाई ने भी कुछ समय बिताया। यहीं से जौहर की अग्नियाँ प्रज्वलित हुईं। 


e) फतेह प्रकाश महल 


राणा फतेह सिंह द्वारा निर्मित यह महल अब एक संग्रहालय (museum) में बदल गया है। 

4).चित्तौड़गढ़ का साहस और बलिदान से नाता 

चित्तौड़गढ़ का इतिहास सिर्फ किला या युद्ध के बारे में नहीं है, बल्कि यह बलिदान और आत्मसम्मान की अनोखी मिसाल प्रस्तुत करता है। 


रानी पद्मिनी, जिन्होंने अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया। 


राणा सांगा, जिनकी शौर्यगाथाएँ अकबर के दरबार में प्रसिद्ध थीं। 


महाराणा प्रताप, जिन्होंने मुगलों के सामने कभी समर्पण नहीं किया। 


यह किला राजपूत गर्व, उत्साह और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है। 

 

मार्गदर्शिका (Travel Guide) 


स्थान: चित्तौड़गढ़, राजस्थान 


कैसे आएं: 


रेलमार्ग: चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन मुख्य स्टेशन है। 


सड़क परिवहन: उदयपुर, कोटा, अजमेर, जयपुर से बेहतर बस सेवाएं उपलब्ध हैं। 


निकटतम विमानतल: उदयपुर (95 किमी) 


प्रवेश शुल्क: 


भारतीय यात्रा करने वाला: ₹40 


विदेशी यात्री: ₹600 


गाइड फी और वाहन शुल्क अलग-अलग 


खुलने का समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक 


सफर का सही समय: 


अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अनुकूल होता है। 


गर्मियों में दोपहर से बचें, किले की यात्रा काफी श्रमिक हो सकती है। 


फायदेमंद सलाह 


किला बहुत विशाल है, इसे देखने के लिए समय निकालें (कम से कम 3-4 घंटे)। 


स्थानीय गाइड का सहारा लेने से इतिहास को समझना और भी सरल हो जाएगा। 


कैमरा और पानी को एक साथ रखें। 


दोपहर में विजय स्तंभ से सूर्य के अस्त होते हुए देखना एक अद्भुत अनुभव है। 

निष्कर्ष। 

चित्तौड़गढ़ किला सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति काIdentifiers: सामर्थ्य है। इसकी दीवारें आज भी राजपूतों के वीरता कथा, महिलाओं की इज्जत की रक्षा, और बलिदान की पवित्रता को बयां करती हैं। 


यदि आप भारत के इतिहास में गहन रुचि रखते हैं, तो चित्तौड़गढ़ किले की यात्रा आपके जीवन का अनोखा अनुभव बन सकती है। 




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