“बदलते समय में सहकारिता का बढ़ता महत्व – भारत की अर्थव्यवस्था, रोजगार और विकास में सहकार का योगदान”
निजी समय में आधार का सबसे बड़ा महत्व - भारत की अर्थव्यवस्था, रोजगार और विकास में सहकार का योगदान
सहयोग का अनुगमन (सहयोग का अनुगमन )
सूत्र का मतलब है – “साझा प्रयास से समूह का विकास।”
यह सिद्धांत इस सिद्धांत पर आधारित है कि जब लोग सामूहिक रूप से कार्य करते हैं, तो वे केवल अपने उद्घाटन का समाधान नहीं करते हैं, बल्कि समाज के समग्र विकास के साथ भी सहायता करते हैं। करते हैं।
भारत एक बड़ा देश है, जहाँ अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है , क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का आधार है। यह किसानों, उद्यमियों, महिलाओं और युवाओं को एक सामूहिक मंच प्रदान करता है , जिससे वे अपनी मांग के अनुसार काम कर सकते हैं और आत्मनिर्भर हो सकते हैं।
भारत में सहयोगी आंदोलन का इतिहास (भारत में सहयोगी आंदोलन का इतिहास)
भारत में साहचर्य आंदोलन की शुरुआत 1904 के साहचर्य समाज अधिनियम से हुई।
क्रांति के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने राष्ट्रपति को "लोकतंत्र का मूल मंत्र" कहा था।
अमूल मॉडल - तार की महानतम उपलब्धि
अमूल (अमूल) का उदाहरण आज भी भारत की "दूध क्रांति" का प्रतीक है।
यह एक ऐसा सहयोगी संगठन है जिसने लाखों किसानों को आर्थिक संकट से उबारा ।
महाराष्ट्र के चीनी मिलों, सहयोगी सहयोगियों, और महिला स्वयं सहायता समूह (स्वयं सहायता समूह) ने ग्रामीण भारत की स्थिति को भी बदल दिया।
ज़ुकुक समय में ताज़े का महत्व ना
आज का समय डिजिटल परिवर्तन और वैश्विकता का है।
सहयोगी संस्थाएँ अब केवल पारंपरिक उत्पादन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्त, ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।
1.वित्तीय सुविधा और रोजगार उत्पत्ति
संप्रदाय का उद्देश्य लाभ नहीं है, बल्कि संप्रदाय का उद्देश्य पूरा करना है ।
ऐसे आर्थिक मेक गरीब और मध् यम वर्ग को मिलते हैं।
2.नारी संस्कृति और आत्मनिर्भरता
महिला स्वयं सहायता समूह (एस.एस.एस.एच.जी.) की एक नई पहचान बन गई हैं ।
आज लाखों छोटी औरतें उद्योग, हस्तकला और उद्यमिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं।
3.डिजिटल और लघु सहायता
नई पीढ़ी के सहयोगी संगठन अब डिजिटल ऑटोमोबाइल का प्रयोग किया गया कर सहयोगी और प्रभावशाली प्रबंधन स्थापित कर रहे हैं।
साथ ही वे पर्यावरण के प्रति विशेषज्ञ हैं और स्थिर विकास के प्रयास कर रहे हैं । =
भारत की संस्था में सहयोगी संस्था का योगदान
भारत में लगभग 8.5 लाख से अधिक सहयोगी समितियाँ सक्रिय हैं, करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं ।
ये संस्थाएँ कृषि, अर्थशास्त्र, उपभोक्ता सामान, और ग्रामीण उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं ।
अमूल, इफको, नाफेड, और क्रेडिट को क्रेडिट को बढ़ावा देने वाले बैंक जैसे संगठन भारत की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आय को सीधे बढ़ाने में सहायक हैं।
सरकार की परिभाषा - "सहयोग से समृद्धि" के मार्ग में (सरकारी पहल)
भारत सरकार ने ढांचागत मंत्रालय को नई पहचान देते हुए इसका निर्माण कराया है
इस मंत्रालय का लक्ष्य है - "सहयोग से समृद्धि" अर्थात् सहयोग से समृद्ध भारत का निर्माण ।
सरकार अब एफ डिजिटल (किसान उत्पादक किसान ), डिजिटल डिजिटल और साख्य सामग्री को भी बढ़ावा दे रही है ।
साझीदारी द्वारा सामना कीजाने वाली अंत्येष्टि
1.स्पष्टता और प्रबंधन की कमी
2.पोलिटिक पासपोर्टंदाजी
3.युवाओं की गिरावट
4.आधुनिक तकनीक की कमी
5.सीमित धन और वित्तीय साधन
समाधान और भविष्य का सिद्धांत (समाधान और भविष्य का सिद्धांत)
• सहयोगी संस्था को डिजिटल शिक्षा प्रदान करना
• महिलाओं एवं किशोरों का नेतृत्व समर्थन करना
• बॅकसेट और सहयोगी प्रणाली को बनाना
• नवोन्मेष और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना
एसोसिएशन मॉडल को शिक्षा , स्वास्थ्य एवं रोजगार के क्षेत्र में फैलाया गया
निष्कर्ष (निष्कर्ष)
ढांचा केवल एक आर्थिक ढांचा नहीं है, बल्कि यह एक मानव केंद्रित मूल्य प्रणाली है।
यह हमें सिखाया गया है कि सामूहिक प्रयास ही चमत्कारिक विकास का मूल है ।
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